भोपाल : 13/08/2021 08:33
कृषि क्षेत्र में अपरिमित संभावनाओं के द्वार खोलकर कैसे किसानों को अग्रणी और आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है, इसका मध्यप्रदेश स्वर्णिम आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। दरअसल कोरोना काल की अप्रत्याशित और अभूतपूर्व चुनौतियों के बीच मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोक-कल्याणकारी कार्यों से मिसाल कायम की है। इसका उदाहरण कृषि क्षेत्र में मिल रही ऐतिहासिक उपलब्धियाँ और सफलताएँ हैं, जिनकी सराहना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी की है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं किसान हैं और वे किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्धता से कार्य करने के लिए जाने जाते है। उनके डेढ़ दशक से ज्यादा के कार्यकाल में कृषि के क्षेत्र में नवाचार और आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया गया है। इसके दीर्घकालीन प्रभाव ही है कि कृषि कर्मण अवार्ड को लगातार जीतकर प्रदेश ने इतिहास रचा है। प्रदेश में अनाज, सब्जी और फलों की उत्पादन लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। पशुपालन, मछली पालन और मधुमक्खी पालन को भी लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य की विविधतापूर्ण जलवायु को दृष्टिगत रखते हुए सरकार बेहतर तालमेल स्थापित कर सभी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को प्रशिक्षण के साथ समुचित सहायता भी देती रही है।
सोयाबीन और गेहूँ के उत्पादन में मध्यप्रदेश ने नित नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सोयाबीन खरीफ मौसम में प्रदेश में सर्वाधिक बोई जाने वाली फसल है। इसके साथ धान, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, तिल और कपास का भरपूर उत्पादन होने लगा है। रबी की फसलों में गेहूँ, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी आदि प्रमुख हैं। इनमें गेहूँ का रकबा सर्वाधिक है। गेहूँ की उत्पादकता के लिये किये गये प्रयासों के कारण इसका क्षेत्रफल, उत्पादन तथा उत्पादकता भी तेजी से बढ़ रही है और अब मध्यप्रदेश इसके उत्पादन में अग्रणी राज्य बन गया है। इस प्रकार प्रदेश में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों ने विगत डेढ़ दशक में उत्पादन तथा उत्पादकता के क्षेत्र में उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
केंद्र सरकार की लोक-कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मध्यप्रदेश को भली-भाँति मिल रहा है, जिससे प्रदेश का अन्नदाता प्रसन्न और खुशहाल है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में पात्र किसानों को दावा राशि का भुगतान प्राथमिकता से कराया जाता है। योजना का लाभ दूरस्थ और गरीब किसानों को भी मिले, इसे ध्यान में रखते हुए वनग्रामों को राजस्व ग्राम में अर्थात् पटवारी हल्के में शामिल किया गया है। पहले वन ग्राम राजस्व ग्राम में नहीं होने से तथा पटवारी हल्के के अन्तर्गत शामिल न होने के कारण वन अधिकार पट्टों पर प्राप्त भूमि के पट्टेधारियों को फसल हानि के मामले में फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाता था। अब सभी किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिलने लगा है।
मध्यप्रदेश के किसानों को अपने कृषि उत्पाद निर्यात करने में सुविधा मिले तथा उन्हें अपनी उपज का अधिकतम लाभ हासिल हो सके, इसके लिए व्यवस्थागत कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। प्रमाणित एवं गुणवत्ता युक्त बीज के भण्डारण के लिए पंचायत स्तर पर प्र-संस्करण इकाइयाँ तेजी से स्थापित की जा रही हैं। कृषि अधोसंरचना निधि के अंतर्गत मध्यप्रदेश को साल 2020-21 में 7500 करोड़ रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ है, जिसके उपयोग में प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है।
किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आधुनिक मंडियों की स्थापना, फूड पार्क, शीत गृहों की श्रृंखला स्थापित करने के साथ-साथ साइलो एवं वेयर हाउस के निर्माण को मिशन मोड में प्रोत्साहित किया जा रहा है। नए कृषि कानूनों के आने से किसान अपनी उपज को मंडी में या अन्यत्र देश में कहीं भी बेचने के लिये स्वतंत्र हो गया है। अब जहाँ किसान को लाभ मिलेगा वह बिना किसी अवरोध और रोक-टोक के वहाँ अपनी उपज बेच सकेगा।
किसान अन्नदाता एवं जीवनदाता है। कोविड-19 के संक्रमण काल में मंडियाँ बंद होने के कारण किसान अपनी उपज बेचने मंडियों में नहीं आ पा रहा था। प्रदेश सरकार ने कोविड-19 के संक्रमण के दृष्टिगत किसानों की भूमि उपज की बिक्री सुनिश्चित करने हेतु मण्डियों से बाहर किसानों के घर से ही सौदा पत्रक के आधार पर उपज की खरीदी किया जाना सुनिश्चित किया। केंद्र की मोदी सरकार की लोक-कल्याणकारी नीतियों से किसानों के जीवन में आशातीत सुधार होने लगे हैं। पीएम-किसान योजना से किसानों के बैंक खातों में राशि सीधे ट्रांसफर होती है। यह क्रांतिकारी बदलाव है। इससे बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने के सार्थक प्रयास किये गये हैं। प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना से भारत के ग्रामीण समाज का विकास और प्रगति से सीधे जुड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत का आम किसान गाँवों में रहता है और उसके लिए खेती और उसकी मिट्टी सम्मान का प्रतीक है। प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना के अंतर्गत पॉयलेट प्रोजेक्ट के रूप में जिन 6 राज्यों का चयन किया गया है, उसमें हमारा अपना मध्यप्रदेश भी है। योजना के क्रियान्वयन में हरदा जिले के मसनगाँव के रामभरोस विश्वकर्मा को लाभ दिलाकर मध्यप्रदेश ने अग्रणी स्थान बनाया है।
किसानों को उपज का उचित एवं लाभकारी मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए राज्य सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए कृषि के क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। बरसों से गेहूँ उपार्जन के बाद चना, मसूर, सरसों के उपार्जन के निर्णय को किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल की पहल पर परिवर्तित कर गेहूँ के पूर्व चना, मसूर और सरसों के उपार्जन का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। गौरतलब है कि चना और सरसों की फसल गेहूँ की फसल के पहले आती है, ऐसे में किसानों को अब मजबूरी में कम कीमत पर बाजार में अपनी उपज को बेचने की जरूरत नहीं है। सरकार का गेहूँ के पहले चना, मसूर और सरसों के उपार्जन का निर्णय किसानों के लिए बेहद लाभकारी साबित हुआ है। राज्य सरकार एक और अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए किसानों से ग्रीष्मकालीन मूंग को समर्थन मूल्य पर खरीद रही है। इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर और अधिकतम मूल्य प्राप्त हुआ है। किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प को पूरा करने में इससे बड़ी मदद मिली है।
मध्यप्रदेश के सर्वांगीण विकास और स्वर्णिम मध्यप्रदेश की स्थापना में गाँव, गरीब और किसान की सशक्त सहभागिता के लक्ष्य को लेकर प्रदेश की वर्तमान सरकार लगातार काम कर रही है। मध्यप्रदेश की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ किसान हैं। प्रदेश के किसान लगातार सफलता के कीर्तिमान गढ़ रहे है। कभी बीमारू राज्य कहा जाने वाला मध्यप्रदेश अब अपनी जन-कल्याणकारी और किसान हितैषी नीतियों के कारण कृषि उत्पादन और खुशहाली में देश के अग्रणी राज्यों में शुमार हो गया है।
भोपाल : 13/08/2021 08:33
कृषि क्षेत्र में अपरिमित संभावनाओं के द्वार खोलकर कैसे किसानों को अग्रणी और आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है, इसका मध्यप्रदेश स्वर्णिम आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। दरअसल कोरोना काल की अप्रत्याशित और अभूतपूर्व चुनौतियों के बीच मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने लोक-कल्याणकारी कार्यों से मिसाल कायम की है। इसका उदाहरण कृषि क्षेत्र में मिल रही ऐतिहासिक उपलब्धियाँ और सफलताएँ हैं, जिनकी सराहना प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी की है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं किसान हैं और वे किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्धता से कार्य करने के लिए जाने जाते है। उनके डेढ़ दशक से ज्यादा के कार्यकाल में कृषि के क्षेत्र में नवाचार और आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया गया है। इसके दीर्घकालीन प्रभाव ही है कि कृषि कर्मण अवार्ड को लगातार जीतकर प्रदेश ने इतिहास रचा है। प्रदेश में अनाज, सब्जी और फलों की उत्पादन लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। पशुपालन, मछली पालन और मधुमक्खी पालन को भी लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य की विविधतापूर्ण जलवायु को दृष्टिगत रखते हुए सरकार बेहतर तालमेल स्थापित कर सभी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को प्रशिक्षण के साथ समुचित सहायता भी देती रही है।
सोयाबीन और गेहूँ के उत्पादन में मध्यप्रदेश ने नित नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सोयाबीन खरीफ मौसम में प्रदेश में सर्वाधिक बोई जाने वाली फसल है। इसके साथ धान, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, तिल और कपास का भरपूर उत्पादन होने लगा है। रबी की फसलों में गेहूँ, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी आदि प्रमुख हैं। इनमें गेहूँ का रकबा सर्वाधिक है। गेहूँ की उत्पादकता के लिये किये गये प्रयासों के कारण इसका क्षेत्रफल, उत्पादन तथा उत्पादकता भी तेजी से बढ़ रही है और अब मध्यप्रदेश इसके उत्पादन में अग्रणी राज्य बन गया है। इस प्रकार प्रदेश में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों ने विगत डेढ़ दशक में उत्पादन तथा उत्पादकता के क्षेत्र में उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
केंद्र सरकार की लोक-कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मध्यप्रदेश को भली-भाँति मिल रहा है, जिससे प्रदेश का अन्नदाता प्रसन्न और खुशहाल है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में पात्र किसानों को दावा राशि का भुगतान प्राथमिकता से कराया जाता है। योजना का लाभ दूरस्थ और गरीब किसानों को भी मिले, इसे ध्यान में रखते हुए वनग्रामों को राजस्व ग्राम में अर्थात् पटवारी हल्के में शामिल किया गया है। पहले वन ग्राम राजस्व ग्राम में नहीं होने से तथा पटवारी हल्के के अन्तर्गत शामिल न होने के कारण वन अधिकार पट्टों पर प्राप्त भूमि के पट्टेधारियों को फसल हानि के मामले में फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पाता था। अब सभी किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिलने लगा है।
मध्यप्रदेश के किसानों को अपने कृषि उत्पाद निर्यात करने में सुविधा मिले तथा उन्हें अपनी उपज का अधिकतम लाभ हासिल हो सके, इसके लिए व्यवस्थागत कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। प्रमाणित एवं गुणवत्ता युक्त बीज के भण्डारण के लिए पंचायत स्तर पर प्र-संस्करण इकाइयाँ तेजी से स्थापित की जा रही हैं। कृषि अधोसंरचना निधि के अंतर्गत मध्यप्रदेश को साल 2020-21 में 7500 करोड़ रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ है, जिसके उपयोग में प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है।
किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आधुनिक मंडियों की स्थापना, फूड पार्क, शीत गृहों की श्रृंखला स्थापित करने के साथ-साथ साइलो एवं वेयर हाउस के निर्माण को मिशन मोड में प्रोत्साहित किया जा रहा है। नए कृषि कानूनों के आने से किसान अपनी उपज को मंडी में या अन्यत्र देश में कहीं भी बेचने के लिये स्वतंत्र हो गया है। अब जहाँ किसान को लाभ मिलेगा वह बिना किसी अवरोध और रोक-टोक के वहाँ अपनी उपज बेच सकेगा।
किसान अन्नदाता एवं जीवनदाता है। कोविड-19 के संक्रमण काल में मंडियाँ बंद होने के कारण किसान अपनी उपज बेचने मंडियों में नहीं आ पा रहा था। प्रदेश सरकार ने कोविड-19 के संक्रमण के दृष्टिगत किसानों की भूमि उपज की बिक्री सुनिश्चित करने हेतु मण्डियों से बाहर किसानों के घर से ही सौदा पत्रक के आधार पर उपज की खरीदी किया जाना सुनिश्चित किया। केंद्र की मोदी सरकार की लोक-कल्याणकारी नीतियों से किसानों के जीवन में आशातीत सुधार होने लगे हैं। पीएम-किसान योजना से किसानों के बैंक खातों में राशि सीधे ट्रांसफर होती है। यह क्रांतिकारी बदलाव है। इससे बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने के सार्थक प्रयास किये गये हैं। प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना से भारत के ग्रामीण समाज का विकास और प्रगति से सीधे जुड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत का आम किसान गाँवों में रहता है और उसके लिए खेती और उसकी मिट्टी सम्मान का प्रतीक है। प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना के अंतर्गत पॉयलेट प्रोजेक्ट के रूप में जिन 6 राज्यों का चयन किया गया है, उसमें हमारा अपना मध्यप्रदेश भी है। योजना के क्रियान्वयन में हरदा जिले के मसनगाँव के रामभरोस विश्वकर्मा को लाभ दिलाकर मध्यप्रदेश ने अग्रणी स्थान बनाया है।
किसानों को उपज का उचित एवं लाभकारी मूल्य प्राप्त हो, इसके लिए राज्य सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठाते हुए कृषि के क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। बरसों से गेहूँ उपार्जन के बाद चना, मसूर, सरसों के उपार्जन के निर्णय को किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल की पहल पर परिवर्तित कर गेहूँ के पूर्व चना, मसूर और सरसों के उपार्जन का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। गौरतलब है कि चना और सरसों की फसल गेहूँ की फसल के पहले आती है, ऐसे में किसानों को अब मजबूरी में कम कीमत पर बाजार में अपनी उपज को बेचने की जरूरत नहीं है। सरकार का गेहूँ के पहले चना, मसूर और सरसों के उपार्जन का निर्णय किसानों के लिए बेहद लाभकारी साबित हुआ है। राज्य सरकार एक और अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए किसानों से ग्रीष्मकालीन मूंग को समर्थन मूल्य पर खरीद रही है। इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर और अधिकतम मूल्य प्राप्त हुआ है। किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प को पूरा करने में इससे बड़ी मदद मिली है।
मध्यप्रदेश के सर्वांगीण विकास और स्वर्णिम मध्यप्रदेश की स्थापना में गाँव, गरीब और किसान की सशक्त सहभागिता के लक्ष्य को लेकर प्रदेश की वर्तमान सरकार लगातार काम कर रही है। मध्यप्रदेश की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ किसान हैं। प्रदेश के किसान लगातार सफलता के कीर्तिमान गढ़ रहे है। कभी बीमारू राज्य कहा जाने वाला मध्यप्रदेश अब अपनी जन-कल्याणकारी और किसान हितैषी नीतियों के कारण कृषि उत्पादन और खुशहाली में देश के अग्रणी राज्यों में शुमार हो गया है।
कृषि क्षेत्र में अपरिमित संभावनाओं के द्वार खोलकर कैसे किसानों को अग्रणी और आत्म-निर्भर बनाया जा सकता है, इसका मध्यप्रदेश स्वर्णिम आदर्श प्रस्तुत कर रहा है।
सदी की सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा - कोरोना महामारी, जिसने समूचे विश्व को हिला कर रख दिया, से जूझना तथा उससे प्रदेश को सफलतापूर्वक न्यूनतम हानि के साथ बाहर निकाल ले जाना किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प और साहसी निर्णयों ने आज मध्यप्रदेश को विकासशील राज्य की अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा किया है।
मध्यप्रदेश के संसाधनों और कौशल से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के सुनियोजित विकास की दिशा अब आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश की ओर तेजी से कदम बड़ा रही है।
वन्य प्राणी के स्वच्छंद विचरण से प्रकृति का सौंदर्य कई गुना बढ जाता है। वन्य प्राणी आम-जन के आस-पास रहते हुए सह-अस्तित्व की स्थिति का स्मरण कराते रहते हैं।
'आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश' की आत्मा 'वोकल फार लोकल' में निहित है। आत्मा की इस आवाज पर ही स्थानीय शिल्प कला, संस्कृति में प्रदेश की पुरा-सम्पदा और हुनर को शामिल कर प्रदेश के आर्थिक विकास की नींव को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है।
प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों की बड़ी आबादी निवास करती है। जनजातीय समाज के समग्र विकास के लिए केन्द्र और राज्य सरकार सदैव कटिबद्ध रही है।
देश और दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु असंतुलन और बिजली के अपव्यय से बचाने के लिये ऊर्जा साक्षरता अभियान (ऊषा) के रूप में लोगों को जागरूक करने की अनूठी पहल मध्यप्रदेश के नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग ने की है।
वर्तमान में मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक गौवंश और गौशालाओं वाला प्रदेश है। यहाँ गौवंश के विकास, गौ-पालन, गौ-संरक्षण, गौ-संवर्धन और गौ आधारित उत्पादों के संवर्धन के लिये सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं।